भगवान श्रीकृष्ण की उन प्रमुख लीलाओं में से एक है, जिसे रसिक संतों, गोस्वामी तुलसीदास, श्रीमद्भागवत, तथा आचार्य गोस्वामियों ने अत्यंत हृदयस्पर्शी भाव से वर्णित किया है। यह लीला मुख्य रूप से भागवत महापुराण के दशम स्कंध के अध्याय 47 में आती है, जिसे “भ्रमर गीत” या “उद्धव संदेश लीला” कहा जाता है।
लीला का सारांश:
जब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए और गोपियों से विछोह हुआ, तब ब्रज में सभी गोपियां अत्यंत व्याकुल हो गईं। राधारानी और सखियाँ दिन-रात कृष्ण वियोग में जलने लगीं। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र उद्धव को ब्रज में यह संदेश लेकर भेजा कि वे योगेश्वर हैं, सर्वव्यापक हैं और गोपियों को सांसारिक मोह से ऊपर उठना चाहिए।
उद्धव ने जब राधा-सखियों के समक्ष श्रीकृष्ण का यह “ज्ञानयुक्त संदेश” सुनाया, तो गोपियों ने उस ज्ञान की भाषा को अस्वीकार करते हुए, अपने विरह-वेदना और माधुर्य-भक्ति की सच्चाई को प्रकट किया। राधारानी ने एक भ्रमर (भौंरे) को श्रीकृष्ण का दूत मानते हुए उससे संवाद किया। इस संवाद में राधा की पीड़ा, विरह, उलाहना, अनुराग और माधुर्य रस प्रकट होता है — यही भ्रमर गीत है।
“भ्रमर गीत” के भावार्थ
(कुछ मुख्य तत्व):
- भौंरा प्रतीक है कृष्ण का राधा उसे संबोधित कर कहती हैं कि तू भी उसी की तरह चंचल है, जो फूलों से रस लेकर उड़ जाता है, जैसे श्रीकृष्ण गोपियों का प्रेम लेकर मथुरा चले गए।
- गोपियों का भक्ति प्रधान प्रेम
— वे कोई सांसारिक सुख नहीं चाहतीं, बस श्रीकृष्ण का सान्निध्य ही उनके जीवन का परम लक्ष्य है। - राधा के उलाहना में प्रेम है— उलाहना देने में भी गहरा अनुराग छुपा है। यह अद्वितीय माधुर्य भक्ति का उदाहरण है।
भ्रमर घाट, वृंदावन का महात्म्य
वृंदावन में “भ्रमर गीत घाट” नामक एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह यमुना तट पर स्थित है। मान्यता है कि राधारानी ने वहीं पर भ्रमर से संवाद किया था, यानी उद्धव से कृष्ण का संदेश सुनकर वहीं यह लीला हुई थी। यह घाट आज भी रासिक भक्तों और संतों के लिए एक विशेष उपासना स्थल है।
रासलीला में प्रस्तुति
ब्रज में रासलीला मंडलियाँ जब भ्रमर गीत लीला मंचित करती हैं, तो इसमें राधा का अभिनय करने वाली गोपी भ्रमर (भौंरे) से बात करती है, उसे उलाहना देती है, और अंततः “कृष्ण हमसे दूर क्यों गए?” इस पीड़ा को रसात्मक ढंग से प्रकट करती है। यह मंचन अत्यंत भावपूर्ण और मार्मिक होता है।
संतों की दृष्टि से:
महाप्रभु वल्लभाचार्य ने इसे भक्ति की पराकाष्ठा माना। रसराज गोस्वामी श्रीहित हरिवंश जी के अनुसार, यह लीला राधा के भाव की चरम सीमा है। स्वामी हरिदास और चित्तचोर गोस्वामी जैसे रसिक संतों ने भ्रमर गीत पर अनेक पद रचे।
More Stories
ब्रज मंडल में भक्ति काल के संतों की वाणी
कुम्भ
मीरा बाई: कृष्ण भक्त कवयित्री की अद्भुत जीवनी