उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के 5251 वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में गीता शोध संस्थान वृंदावन में तृतीय श्रीकृष्ण राष्ट्रीय चित्रांकन शिविर-2024 का आयोजन 10 से 12 सितम्बर के मध्य किया गया। शिविर में अलग-अलग राज्यों के कुल 23 महिला व पुरुष चित्रकारों ने भाग लिया।
शिविर का शुभारंभ 10 सितम्बर को प्रदेश के गन्ना विकास एवं चीनी मिल मंत्री माननीय श्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने किया। उन्होंने सभी चित्रकारों को राज्य सरकार की ओर से पटुका पहनाकर सम्मानित किया। सभी को केनवास व रंगों की किट प्रदान की गयीं। सभी को ब्रज में पधारने पर बधाई दी।
शुभारंभ सत्र में उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री एस बी सिंह ने मंत्री जी का स्वागत किया। उन्होंने शुभारंभ मौके पर बताया का भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर हर वर्ष श्रीकृष्ण राष्ट्रीय चित्रांकन शिविर का आयोजन होता है, जिसमें भगवान की लीलाओं का सुदर चित्रण किया जाता है। श्री सिंह ने ब्रज में परिषद द्वारा श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों को संवारने, ब्रज संस्कृति के सरंक्षण आदि कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। अंतिम दिन सभी को प्रशस्ति पत्र भेंट कर विदा किया गया।
श्रीकृष्ण की लीलाओं का अद्भुत चित्रांकन
ग्रेटर नोएडा में रह रहीं मुजफ्फरपुर (बिहार) की चित्रकार श्रीमती कंचन प्रकाश ने मुजफ्फरपुर (बिहार) की बज्जिका शैली में भगवान श्री कृष्ण के प्रति समर्पण भाव का चित्रण किया है। इसमें श्री राधा, गोपियां श्री कृष्ण के लिए माखन फल-फूल वस्त्र इत्यादि तैयार कर रही हैं। ये चित्र बिहार के बज्जीकांचल क्षेत्र के मुजफ्फरपुर के भुसारा गांव में बनाई जाने वाली सुजनी कला से प्रभावित होकर बनाया गया। इस गांव को यूनेस्को अवार्ड और जीआई टैग का सामान प्राप्त है। बेल्जियम म्यूजियम में भी श्रीमती कंचन प्रकाश के द्वारा बनाये बज्जिका शैली के चित्र लगे हैं।
आस्टा (सीहोर) एमपी की चित्रकार श्रीमती अल्का मनीष पाठक ने वाँस शैली जल रंग तकनीक में कालिया नाग पर कृष्ण के नृत्य का चित्रांकन किया है जबकि उज्जैन (एमपी) की श्रीमती सुमन डोंगरे ने पारंपरिक शैली में राधा-कृष्ण का झूला झूलते हुए चित्र बनाया है। इंदौर (एमपी) की श्रीमती अल्का झा ने भगोसिरा (आदिवासी) शैली में राधा को बांसुरी बजाना सिखाते हुए कृष्ण का चित्रण किया है।
लखनऊ के विनोद कुमार ने कृष्ण व बलदेव को बचपन में संदीपन मुनि के आश्रम उज्जैन में शिक्षा ग्रहण करने का चित्र यथार्थ शैली (सेमी वास) में बनाया।
कु. नेहा (लखनऊ) ने किशनगढ शैली में श्रृंगार रस का और पटना (बिहार)की चित्रकार श्रीमती सत्या सार्थ ने समकालीन कला शैली में कृष्ण के प्रकृति प्रेम का चित्रण किया है।
चित्तौडगढ़( राजस्थान) के मनोज जोशी ने पिछवायी कलां का, मोहाली (चंडीगढ) की श्रीमती मनजीत कौर ने कांगड़ा शैली में कृष्ण द्वारा शंख से मेघ बुलाने का सुंदर चित्रण किया है। नाथद्वारा (राजस्थान) की श्रीमती वंदना जोशी ने लीलाओं का चित्रण लोककला की पारंपरिक शैली में किया है। भुज (गुजरात) के नवीन भाई और जिगर भाई ने भी श्रीकृष्ण की लीलाओं का रंगों से काफी सुंदर चित्रण किया है।
इसी प्रकार बलरपुर (छत्तीसगढ) की चित्रकार डा भारती परमार, कोटा (राजस्थान) की श्रीमती रंजना शर्मा, ग्वालियर( एमपी) की डा खुशबू शर्मा,
हल्द्वानी (उत्तराखंड) की श्रीमती कुसुम पांडेय, कानपुर के डीएवी कालेज की आर्ट की हैड आफ द डिपार्टमेंट डा. कुमुद वाला अलग-अलग शैली में कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया है। कानपुर( यूपी )की डा रिचा सिंह ने समकालीन शैली में चीरहरण का चित्रण किया है।
अन्य चित्रकार मेरठ (यूपी) के डा प्रिंस राज, दुर्ज (छत्तीसगढ) के ब्रजेश कुमार, ग्रेटर नोएडा (यूपी) की श्रीमती रंजीता कुमार, पुणे (महाराष्ट्र) के कुडलया एम हिरेमठ ने रुकमणि हरण का चित्रण व अबोहर (पंजाब) की डा जतेंदर कौर ने भी लीलाओं का चित्रण किया।
उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद की ओर से प्रशस्ति पत्र भेंट
मथुरा। राष्ट्रीय शिविर के अंतिम दिन साहित्यकार कपिल उपाध्याय, दूरदर्शन के प्रभारी सत्यव्रत सिंह, गीता शोध संस्थान के निदेशक दिनेश खन्ना, पूर्व शिक्षाधिकारी एस पी गोस्वामी व चित्रकार द्वारिका प्रसाद ने संयुक्त रूप से सभी चित्रकारों को प्रशस्ति, पुस्तकें आदि भेंट कर ससम्मान विदा किया।
सभी चित्रकारों के चित्रों का विवरण गीता शोध संस्थान वृंदावन के समन्वयक चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार ने दिया।
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