मीरा बाई, जिनका जन्म सन् 1498 ई. में पाली के कुड़की गांव में हुआ था, भारतीय भक्ति साहित्य की महान कवयित्री और संत थीं। वे राजा रतन सिंह के घर जन्मी थीं और बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में महाराजा भोजराज से हुआ था, जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। पति की मृत्यु के बाद, मीरा की भक्ति और भी प्रगाढ़ हो गई और उन्होंने कृष्ण भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
मीरा की भक्ति यात्रा
मीरा बाई का जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था। उनके देवर विक्रम सिंह ने उन्हें मारने के लिए कई प्रयास किए, जिनमें जहर का प्याला भेजना और आभूषणों की जगह साँप की टोकरी भेजना शामिल था, लेकिन मीरा पर इनका कोई असर नहीं हुआ। इसके अलावा, विक्रम सिंह ने उन्हें डूबने के लिए कहा, परंतु वे पानी पर तैरती रहीं। इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर मीरा द्वारका और वृन्दावन चली गईं। वहाँ भी उन्हें बहुत सम्मान और प्रेम मिला।
भक्ति और काव्य रचनाएँ
मीरा बाई की रचनाओं में भक्ति और शृंगार रस दोनों की प्रधानता मिलती है। उनके काव्य में कृष्ण की बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला जैसी लीलाओं का सुन्दर वर्णन है। उनकी रचनाएँ राजस्थानी भाषा में गेय पद हैं। मीरा की पदावली में भक्ति की गहनता और प्रेम की उच्चतम भावना प्रकट होती है। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं:
- गोविंद टीका
- राग सोरठा
- मीरा की मल्हार
- नरसी जी रो मायरो
- फुटकर पद
- रूखमणी मंगल
- सत्यम भामों रो रूसनो
- कृष्ण – कृष्ण
गुरुओं का प्रभाव
मीरा बाई के जीवन में उनके गुरुओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके बचपन के गुरु चंपाजी राजपुरोहित थे, जबकि उनके धार्मिक गुरु पंडित गजाधर और आध्यात्मिक गुरु संत रैदास या रविदास थे। संत रैदास के मार्गदर्शन में उन्होंने भक्ति की राह पर चलना सीखा और अपना संपूर्ण जीवन भगवान कृष्ण को समर्पित कर दिया।
अंतिम समय और विरासत
मीरा बाई के अंतिम समय के बारे में विभिन्न किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, वे द्वारका या वृन्दावन में कृष्ण की मूर्ति में विलीन होकर चमत्कारिक रूप से गायब हो गईं। ऐतिहासिक साक्ष्यों की कमी के बावजूद, मीरा की भक्ति और काव्य रचनाएँ आज भी भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण कवि-संतों में से एक के रूप में मानी जाती हैं। उनके भजन और पद आज भी भारत में गाए जाते हैं और उनकी कविताओं का संग्रह 19वीं शताब्दी की पांडुलिपियों में मिलता है।
मीरा बाई की महत्ता
मीरा बाई का जीवन और उनकी रचनाएँ भक्ति और प्रेम की अद्वितीय मिसाल हैं। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भक्ति और प्रेम को नए आयाम दिए। उनके योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा और उनकी रचनाएँ हमें सदैव प्रेरणा देती रहेंगी। मीरा बाई की कविताएँ और भजन आज भी हर भक्त के हृदय में गूंजते हैं और उनकी भक्ति की गहराई का अनुभव कराते हैं।
मीरा बाई की जीवन यात्रा एक प्रेरणादायक कहानी है, जो हमें भक्ति, प्रेम और समर्पण की सच्ची भावना से अवगत कराती है। उनका जीवन संघर्षों और कठिनाइयों के बावजूद भी भक्ति में अडिग रहने की कहानी है, जो हर युग में प्रासंगिक रहेगी।
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